Friday, September 28, 2007

कहाँ जाऊँ मैं, दिल्ली या उज्जैन

व्यथा, व्यावस्था और व्यवहारिकता एक व्यंजन से जनित ये शब्द व्यक्ति पर अपनी सत्ता स्थापित किए रहती है। इनकी सत्ता को तोड़ने के लिए मनुष्य अपने आपको "मैं" और "वह" के द्दंदात्मक चरित्र में रखकर एक ओर जहाँ विरोधी बन जाता है, वहीं दूसरी और धारा में बहता रहता है।
व्यवस्था जहाँ मुक्तिबोध की दो पंक्ति में केंद्रित हो उसके मर्म को उजागर कर देती है।
कहाँ जाऊँ मैं

दिल्ली या उज्जैन

वह समझ ही नहीं पाता। इस आपाधापी में कभी वह स्वयं को "दिल्ली" - मतलब सत्ताधारी का मुखालपत करता वहीं कभी व्यग्रता के आगोश़ में बैठ "उज्जैन" अर्थात भगवान, पूजा, आध्यात्म की सरपरस्ती करने बैठ जाता है। इनसे मुक्ति पथ नहीं पा वह सामान्य दिनचर्या में स्वयं को व्यवहारिकता में ढ़ूढ़ने लगता है। यहाँ उसकी मुलाकात आज से होती है न आदर्शवाद बचता है और सिद्धांत रह जाता है तो नियतिवाद जुझता निमित्त मात्र जो स्वयं को समझाने बैठ जाता है कि सब ठीक हो जाएगा। लेकिन मनुष्य तो मनुष्य है, रुक तो सकता है ठहर नहीं सकता। तो फिर वह कर्म वाद में विश्वास का चोला पहनता है और कभी तुतली बजाने लगता है। लेकिन बदल क्या पाता है? वही .. नेति-नेति.....

यह तीसरा शब्द बाहें फैलाए उसका स्वागत करता है - व्यथा , और यही पहुँच कर पहली बार वह सम्मुख खड़ा होता है स्वयं से। मुलाकात होती है "वह" की "मैं" से। ये सनद रहे की यहाँ "व्यथा" एक सामान्य व्यथा, एक नकारात्मक शब्द के रूप में नहीं अपितु यह स्वयं को सारे अनुभवों के साथ समझने के लिए एक तटस्थ शब्द है। न सकारात्मक और न नकारात्मक।
"व्यष्टि" और "समिष्टि" से उपर मैं और वह से उपर नितांत अलग। भारतीय अध्यात्म में बहुत से वाद तार्किक रूप से स्थापित रहे हैं। कहीं अद्वैतवाद है कहीं द्वैतवाद। मेरा मानना है कि अद्वैतवाद। जिसके नजदीक कबीर भी पहुँचते हैं तो सूफी संत भी। लेकिन जमाना बदला है। आज का अद्वैत अपने को उससे, परा शक्ति के बीच का सीमा ख़त्म करने की ज़द्दो़ज़हद नहीं है। आज का अद्दैतवाद है स्वयं से स्वयं के बीच खड़ी दिवार को हटाने की। और उसकी स्थिति मेरे समझ से यह है। यहाँ से आगे कबीर के 'कुंभ और जल' के समझ की बात हो सकती है और 'घुंघट के पट खोल तुम्हें पिया मिलेगा' या फिर यूं कह लें "हाजी अली पिया हाजी अली" की बात हो सकती है.....।

1 comment:

Manjit Thakur said...

http://www.gustakh.blogspot.com/

ये इस गुस्ताख़ मंजीत का ब्लॉग है, कभी भ्रमण करें।